चातुर्मास 2021: चातुर्मास में इन बातों का रखें ध्यान |
चातुर्मास : शुरुआत, महत्व और इन बातों का रखें ध्यान |
दोस्तों सावन का महीना शुरू हो गया है और इसके साथ शुरू होता है चातुर्मास। आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तक इसे चातुर्मास के नाम से भी कहा जाता हैं। इन महीनों या दिनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं जैसे की विवाह संबंधी कार्य, मुंडन विधि, नाम करण आदि। चातुर्मास शुरुआत को ‘देवशयनी एकादशी’ कहा जाता है और अंत को ‘देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है इसमें श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास आता है और इन 4 महीनों को ही चातुर्मास कहा जाता है। इस साल इसकी अवधि 20 जुलाई 2021 से 14 नवंबर 2021 तक है। हिन्दू धर्म के साथ आयुर्वेद में भी इसका महत्व देखने को मिलता है और साइंटिफ़िकली देखा जाए तो ये बात सटीक भी बैठती है। तो क्या आप इन तथ्यों को जानते हैं और अगर नहीं जानते है तो आज हम इसके बारे में विस्तार से बताएँगे।
पुराणों में भी बताया गया है चातुर्मास का महत्व
हिन्दू धर्म और जैन धर्म में चातुर्मास का बहुत बड़ा महत्व है। पुराणों में भी बताया गया है की यदि इन चार महीनो में कुछ नियमों का पालन किया जाए तो मनुष्य सुखी, स्वस्थ और हर प्रकार के दुखों से राहत पा सकता है। इसीलिए कहते है की चातुर्मास में अगर ध्यान ना दिया जाए तो बीमार होने के चान्सेस 80% बढ़ जाते है क्योंकि चातुर्मास का सेहत के साथ गहरा सबंध है ये हम नीचे दिए गए विवरण में जानेंगे।
हिन्दू धर्म के अनुसार चातुर्मास में व्रत, नियम, पूजा और अनुष्ठान आदि करने के नियम बताए गए हैं। हिन्दू धर्म के साथ साथ जैन धर्म में भी इसका बहुत बड़ा महत्व है। इसका अलग अलग धर्म में अलग महत्व देखने को मिलता है। धर्म के अनुसार इनका महत्व कुछ इस प्रकार से है :
जैन धर्म में चातुर्मास का महत्व :
जैन धर्म में चातुर्मास का अधिक महत्व माना जाता है। इसमें सभी लोग मंदिर जाकर धार्मिक अनुष्ठान करते हैं एवं सत्संग में भाग लेते हैं। घर के छोटे बड़े लोग जैन मंदिर परिसर में एकत्र होकर नाना प्रकार के धार्मिक कार्य करते हैं। आचार्यों एवं गुरुजनों द्वारा सत्संग करते हैं एवं मनुष्यों का मार्गदर्शन किया जाता है। इस तरह चातुर्मास का जैन धर्म में बहुत महत्व है।
बौद्ध धर्म में चातुर्मास का महत्व :
गौतम बुद्ध राजगीर के राजा बिम्बिसार के शाही उद्यान में रहे थे , उस समय चातुर्मास की अवधि चल रही थी। माना जाता है की साधुओं का बरसात के मौसम में इस स्थान पर रहने का एक कारण यह भी था कि इस समय में बड़ी संख्या में कीट उत्पन्न होते थे, जो यात्रा करने वाले भिक्षुकों के पैरों द्वारा कुचले जाते थे जिस कारण जीव हत्या को प्राथमिकता देते हुए उनकी रक्षा हेतु उन्होंने इस समय चलने के बजाए वहां रुकना बेहतर समझा। इस तरह से इसका बौद्ध धर्म में भी महत्व देखने को मिलता है।
पुराणों में भी बताया गया है की यदि इन चार महीनो में कुछ नियमों का पालन किया जाए तो मनुष्य सुखी, स्वस्थ और हर प्रकार के दुखों से राहत पा सकता है। इन महीनो में खाने को लेकर कुछ चीज़ों का परहेज करने को कहा जाता है जो की सेहत के माध्यम से बिलकुल सही है। जैसे की साइंटिफ़िकली देखा जाए तो बरसात का समय होने के कारण हवा और पानी में बैक्टीरिया की संख्या बढ़ जाती है और इस समय पाचन क्रिया भी कमज़ोर होती है जिसके कारण संक्रमण का खतरा अधिक बढ़ जाता है। इसीलिए इस समय में स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा सतर्क रहने को कहा जाता है।
चातुर्मास में क्या ना खाएं और जानेंगे इसके पीछे का वैज्ञानिक तथ्य।
श्रावण मास
इसमें सबसे पहला मास आता है श्रावण यानी की सावन का महीना जो जुलाई से लेकर अगस्त तक रहता है। इस समय हमें हरी पत्तेदार सब्जिया नहीं खानी चाहिए क्योंकि यह समय मानसून का होता है और ज़्यादा बारिश की वज़ह से खेतों में तरह तरह के कीड़े हो जाते हैं और हम इन्ही सब्जियों को बनाकर खाते हैं जिससे बैक्टीरिया के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है और पेट से जुड़ी बीमारियां हो सकती है।
भाद्रपद मास
इसके बाद आता है भाद्रपद का महीना जो अगस्त से लेकर सितम्बर तक रहता है इस महीने में दही नहीं खानी चाहिए खासकर रात में क्योंकि ये शरीर में पित्त रस के स्राव को बढ़ाता है। दही में पहले से ही बैक्टीरिया मौजूद रहते हैं लेकिन बारिश के कारण इनमे बैक्टीरिया बढ़ने के चांसेस और भी बढ़ जाते हैं और दही इसे बढ़ाने का काम करती है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने के साथ साथ आंतों के लिए भी नुकसानदायक होता है। इससे आंतें हमेशा के लिए कमज़ोर हो सकती हैं इसीलिए दही खाने की मनाही की जाती है।
आश्विन मास
तीसरा महीना आता है आश्विन का। इस महीने में दूध और दूध से बनी चीज़ों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। क्योंकि इस समय पाचन क्रिया कमज़ोर पड़ जाती है और ऐसे में दूध को पचाना बहुत ही मुश्किल काम होता है साथ ही इसके लैक्टोज इनटोलरेंट व्यक्ति यानी की (जिनको दूध से एलर्जी होती है) जो लोग दूध को आसानी से पचा नहीं सकते हैं उनको तो वैसे ही इससे परहेज़ करना चाहिए। इसलिए दूध और इससे बनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
कार्तिक मास
चौथा महीना आता है कार्तिक मास का। वहीं कार्तिक मास में कैलोरी से भरपूर दालें जैसे उड़द की दाल और मसूर की दाल को पचा पाना मुश्किल है। इस मास में पित्त दोष संबंधित बीमारी होने का खतरा ज्यादा रहता है और दालें पित्त दोष को बढ़ाता है इसलिए इन दालों को नहीं खाना चाहिए।
चातुर्मास में उपवास का एक खास महत्व है। धर्मों में कहीं न कहीं उपवास को इसीलिए महत्व दिया गया है ताकि धर्म के साथ साथ लोग उपवास से स्वास्थ्य को बैलेंस कर सके। उपवास से एक तो मन की शांति रहती है साथ में शरीर की पूरी तरह से सफाई हो जाती है। जिससे शरीर में जमे कुपित मल शरीर से बाहर निकल जातें हैं। इसीलिए उपवास ज़रूर करना चाहिए और सबसे खास बात ये है की उपवास में के केवल ताज़े फलों का सेवन करना चाहिए ये नहीं की दिन भर उपवास करके शाम को हलवा पूड़ी खाए जाए। इससे शरीर की अंदर से सफाई नहीं हो सकेगी इसलिए इसे ध्यान में रखें।
चातुर्मास में क्या खाएं :
इसकी जगह सात्विक आहार का सेवन करना चाहिए जिसमे फल इत्यादि हों, जैसे की केला, जौ, तिल, चना और नारियल पानी आदि का सेवन भी उत्तम माना गया है जो शरीर के लिए लाभकारी होता है।
इस तरह से इन सारी चीज़ों का हमे खास दिन रखना चाहिए ताकि हम इन महीनो में खुद को स्वस्थ रख सके।